जीत कर भी हार गए नीतीश
बिहार चुनाव में केवल बीजेपी की
हार नहीं हुई... इस चुनाव में पीएम मोदी, अमित शाह, हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी,
उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान की हार के साथ एक और शख्स की हार हुई है... वो
हैं नीतीश कुमार... बिहार की जनता ने भले ही नीतीश को 71 सीटों पर जीत दिलाई हो...
लेकिन नीतीश 71 सीट जीतकर भी बुरी तरीके से हार गए.... 2010 की चुनाव में 113 सीट
जीतने वाले नीतीश कुमार अब 71 पर सिमट गए हैं... वैसे तो राजनीतिक गलियारों में
हमेशा चर्चा होती है कि नीतीश कुमार काफी महत्वाकांक्षी हैं... अपनी महत्वाकांक्षा
के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं.... जिसका उन्होंने कई बार प्रमाण भी दिया
है...चाहे 1994 में लालू का साथ छोड़कर अपनी पार्टी बना ली हो... या अपने पीएम बनने
की ललक की वजह से 2013 में बीजेपी से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया हो... या फिर
सीएम की कुर्सी के लिए जितन राम मांझी को एनकेन प्रकारेण सीएम की कुर्सी
से हटाकर खुद सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए हो...
बिहार
विधानसभा चुनाव में मिस्टर सुशासन की जीत को हार इसलिए भी कहा जा रहा है कि सिर्फ
बीजेपी को बिहार में रोकने के लिए नीतीश कुमार ने अपने घोर विरोधी लालू प्रसाद की
पार्टी और कांग्रेस की पार्टी से हाथ मिला लिया... इस चुनाव में नीतीश रुलिंग पार्टी
के मुखिया होने के बावजूद अपने सीटिंग सीट को छोड़ते हुए मात्र 101 सीटों पर चुनाव लड़ा... और लालू
की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस को उसके औकात से अधिक सीट दे दिए... जिसका फायदा
दोनों पार्टियों को खुब मिला... बिहार में नीतीश की सुशासन आरजेडी और कांग्रेस के लिए अमृत से कम नहीं साबित हुआ... इस चुनाव में अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे लालू के
लिए ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थी... वहीं गर्त में जा चुकी कांग्रेस
अपना नाम बचाने की जुगत में लगी थी... लेकिन इस चुनाव में दोनों पार्टियों की
किस्मत चमक गई... जंगलराज का पर्याय बन चुकी लालू की पार्टी नीतीश कुमार के सुशासन
की वजह से 80 सीट पा गई... वहीं कांग्रेस भी नीतीश की लहर में 27 सीट जीत ली.... ऐसा
नहीं है कि बिहार की जनता को लालू और कांग्रेस की जरुरत थी... मजबूरी में इन दोनों
पार्टियों को वोट करना पड़ा.... क्योंकि इन दोनों पार्टियों को नीतीश के सुशासन का
फल मिला है... ये घटना ठीक उसी तरह से है जिस तरह लोकसभा चुनाव में रसातल पर पहुंच
चुकी राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को मोदी लहर का फायदा मिला
था... और दोनों पार्टिया देखते ही देखते जीवित हो गई...
बिहार के
नतीजे आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर नीतीश और लालू के गठबंधन पर चर्चाएं होने
लगी है... 80 सीट आरजेडी को मिली है... 80 में से 40 विधायक यादव है... और ये किसी
से छूपा नहीं है कि बिहार में 15 साल तक यादवों ने किस कदर गदर काटा था... नियम,
कायदा, कानून की कैसे धज्जियां उड़ाई थी... कानून को ताक पर रखकर पूरे देश में ही
नहीं विदेशों में भी बिहार की छवि को धूमिल किया था... अब ठीक उसी समय का एहसास
होने लगा है... चर्चाएं होने लगी है कि ये 40 विधायक नीतीश को ढंग से काम नहीं
करने देंगे... जाहिर सी बात है.... विधानसभा में जिस पार्टी की सीट अधिक होगी
दबदबा उसी पार्टी का रहेगा... कोई माने या माने नीतीश को दबाव में ही काम करना
पड़ेगा... अब चाहे जो है... जनता ने अपना भविष्य खुद ही लिखा...अब भूगतना भी उसी
को पड़ेगा... वैसे नीतीश कुमार की जो छवि रही है... गठबंधन को लेकर .... उससे ये
भी कयास लगाए जा रहे है कि अगर लालू की पार्टी ज्यादा तिकड़मबाजी की तो नीतीश बीजेपी के साथ जाने में गुरेज नहीं करेंगे...
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