Posts

Showing posts from March, 2014

रिश्तों की डोर

ज़िंदगी मां के आँचल की गांठों जैसी है. गांठें खुलती जाती हैं. किसी में से दुःख और किसी में से सुख निकलता है. हम अपने दुःख में और सुख में खोए रहते हैं. न तो मां का आँचल याद रहता है और न ही उन गांठों को खोलकर मां का वो चवन्नी अठन्नी देना. याद नहीं रहती तो वो मां की थपकियां. चोट लगने पर मां की आंखों से झर झर बहते आंसू. शहर से लौटने पर बिना पूछे वही बनाना जो पसंद हो. जाते समय लाई, चूड़ा, बादाम और न जाने कितनी पोटलियों में अपनी यादें निचोड़ कर डाल देना. याद रहता है तो बस बूढे मां बाप का चिड़चिड़ाना. उनकी दवाईयों के बिल, उनकी खांसी, उनकी झिड़कियां और हर बात पर उनकी बेजा सी लगने वाली सलाह. आखिरी बार याद नहीं कब मां को फोन किया था. ऑफिस में यह कहते हुए काट दिया था कि बिज़ी हूं बाद में करता हूं. उसे फोन करना नहीं आता. बस एक बटन पता है जिसे दबा कर वो फोन रिसीव कर लेती है. पैसे चाहिए थे. पैसे थे, बैंक में जमा करने की फुर्सत नहीं थी. भूल गया था दसेक साल पहले ही हर पहली तारीख को पापा नियम से बैंक में पैसे डाल देते थे. शायद ही कभी फोन पर कहना पडा हो मां पैसे नहीं आए. शादी ...

बाकी जो है सो हइये है...

चुनावी मौसम में नेताओं में एक दूसरे पर सवाल खड़े करने की होड़ मची है... केजरीवाल....राहुल गांधी से राहुल गांधी.... नरेंद्र मोदी से....नरेंद्र मोदी गांधी परिवार से सवाल पूछ रहे है.... एक दूसरे पर हमला करने से तनिक भी लापरवाही नहीं बरती जा रही है.... ये सब हो रहा है बस कुर्सी के लिए.... गद्दी पर विराजमान होने के लिए नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार है... वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं की नजर क्या नक्सलियों पर नहीं जा रही है.... नक्सली एक के बाद एक धमाके और हमले कर देश के वीर सपूतों की जान ले रहा है... लेकिन देश को चलाने वाले और गद्दी के लालची नेता सुकमा में हुए नक्सली हमले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है... देश के वीर सपूत इन नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देना तो चाहते है लेकिन देश और राज्य की गद्दी पर बैठे हुक्मरानों की वजह से जवान ऐसा नहीं कर पा रहे है... गद्दी की लालच में हुक्मरान नक्सलियों पर सीधी कार्रवाई करने से बच रहे है... ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या इन वीर सपूतों के लिए देश का कोई नेता खुलकर सामने आएगा.... क्या कोई इनके लिए भी धरना देगा ? ... क्या देश की ...

ये कैसी बेरुखी...

तेरे आंखों की खता मंजूर है मुझे तेरी बेरुखी भी मंजूर है मुझे देखकर यू तेरा मुकर जाना मंजूर है मुझे मुझे मालुम है तुम्हें भी प्यार है मुझसे तेरा भी दिल धड़कता है मेरे लिए फिर भी ये कैसी दूरिया... तोड़ डालो समाज की उन बंदिशों को मिटा दो समाज के उन लकिरों को जो तुम्हें खुलकर जीने नहीं देती.... जो तुम्हें खुलकर आसमान में उड़ने नहीं देती... तेरे आंखों की खता मंजूर है मुझे तेरी बेरुखी भी मंजूर है मुझे... सीएल दास

कौन सुनता है....

मेरे दर्द की कहानी कौन सुनता है.... मेरे आंसुओं पर कौन ध्यान देता है... दिल में दर्द लिए अकेला चल रहा हूं मैं... मेरी परछाई भी मुझसे पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद में है... क्या खता है मेरी.... कोई मुझे भी तो बता दे... मेरे दर्द की कहानी कौन सुनता है....  मेरे आंसुओं पर कौन ध्यान देता है... ---सी एल दास